बिरह
वक़्त की ख़ामोशी मे पिरोये हुए इन लम्हों को
न जीते बनता है मरते
पतझड़ से पहले का जैसे पत्ता हो
मानो अपना बसंत जी चुका हो
मचलता है ठिठकता है
बस कसमसाकर रह जाता है
हलकी सी ब्यार ही जैसे वापिस ले जाती है
अपनी शीतलता की याद दिलाती है
सूरज की कोंध चुभती है
जैसे कुछ याद दिलाने की कोशिश मे हो
जो सपने तेरे थे, मेरे थे
अनायास ही उन सपनो मे वापिस खोने को जी करता है
गिरते हुए संभलने का जी करता है
तेरी वो हसी याद आती है
जैसे सब पा लिया हो
वो अभिमान याद आता है
जैसे तू सिर्फ मेरा हो
और वो खटक जो कभी हुई नहीं
वो सूनापन जो कभी हुआ नहीं
अठखेली करू तो कैसे
तुझ बिन चलु तो कैसे
रत्ती भर हसु तो कैसे
इश्क़ किसी से करू तो कैसे
दीवे की लौ भी तो रात भर ही जलती है
हवा से लड़ती मस्ती मे झूमती
दीपावली की अमावस का घमंड तोड़ती
जलते जलते बुझती और बुझते बुझते जलती
सवेरा जो हो तो जलना ठीक है
टहनी पे कोपल जो फूटे तो टूटना ठीक है
सम्भल जाए तो गिरना भी ठीक
अपने नहीं तो दूसरे के सपने जीना भी ठीक ॥
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वक़्त की ख़ामोशी मे पिरोये हुए इन लम्हों को
न जीते बनता है मरते
पतझड़ से पहले का जैसे पत्ता हो
मानो अपना बसंत जी चुका हो
मचलता है ठिठकता है
बस कसमसाकर रह जाता है
हलकी सी ब्यार ही जैसे वापिस ले जाती है
अपनी शीतलता की याद दिलाती है
सूरज की कोंध चुभती है
जैसे कुछ याद दिलाने की कोशिश मे हो
जो सपने तेरे थे, मेरे थे
अनायास ही उन सपनो मे वापिस खोने को जी करता है
गिरते हुए संभलने का जी करता है
तेरी वो हसी याद आती है
जैसे सब पा लिया हो
वो अभिमान याद आता है
जैसे तू सिर्फ मेरा हो
और वो खटक जो कभी हुई नहीं
वो सूनापन जो कभी हुआ नहीं
अठखेली करू तो कैसे
तुझ बिन चलु तो कैसे
रत्ती भर हसु तो कैसे
इश्क़ किसी से करू तो कैसे
दीवे की लौ भी तो रात भर ही जलती है
हवा से लड़ती मस्ती मे झूमती
दीपावली की अमावस का घमंड तोड़ती
जलते जलते बुझती और बुझते बुझते जलती
सवेरा जो हो तो जलना ठीक है
टहनी पे कोपल जो फूटे तो टूटना ठीक है
सम्भल जाए तो गिरना भी ठीक
अपने नहीं तो दूसरे के सपने जीना भी ठीक ॥
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